गुरुवार, 6 दिसंबर 2012

ध्वनिविज्ञान (PHONETICS)

                                    
                ध्वनि भाषा की लघुतम और अनिवार्य इकाई है । इसके वर्गीकरण का विशेष महत्व बनता है -

तेषां विभागः पञ्चधा स्मृतः ।
स्वरतः कालतः स्थानात्प्रयत्नानुप्रदानतः ।(अष्टाध्यायी - 9.10)
  
               जिनमें तीन प्रमुख है-
1)स्थान
2) प्रयत्न
3) करण

1) स्थान के आधार पर ध्वनियों का वर्गी करण-
1) काकल- , ः ।
2) कण्ठ्य - अकुहविसर्जनीयानां कण्ठः ।(, , कवर्ग)
3) तालव्य - इचुयशानां तालु । (, , , चवर्ग)
4) मूर्धन्य - ऋटुरषाणां मूर्धा । (, , टवर्ग)
5) दन्त्य - लृतुलसानां दन्ताः । (, , तवर्ग)
6) ओष्ठ्य - उपुपमाध्मीयानामौष्ठौ । (, पवर्ग)1- दन्त्योष्ठ्य - वकारस्य दन्त्योष्ठम् । 2- उभयोष्ठ्य - घ़, ब़, भ़, म़, व़ ।
 7) जिह्वामूलीय - जिह्वामूलीयस्य जिह्वामूलम् ।

2) प्रयत्न के आधार पर ध्वनियों का वरगी करण -
 प्रकृष्टो यत्नः प्रयत्नः
यत्नो द्विविधा - आभ्यान्तरो बाह्यश्च ।
                           () आभ्यान्तर प्रयत्न - 
1) स्पृष्ट (स्पर्श्य) - क से म तक । (25 वर्ण)
2) ईषत्स्पृष्ट (अन्तस्थ) - यणोSन्तस्थाम् । (, , , ल ।)
3) विवृत (स्वर) - अच स्वराः । ( स्वर)
4) ईषत्विवृत (उष्म) - शल उष्मणः । (, , , ह ।)
5) संवृत - ह्रस्व अ वर्ण ।
() बाह्य प्रयत्न
 1) विवार - खरो विवाराः श्वासा अघोषाश्‍च । ( वर्ग के प्रधम, द्वितीय वर्ण तथा श, , )
2) श्वास - खरो विवाराः श्वासा अघोषाश्‍च । ( वर्ग के प्रधम, द्वितीय वर्ण तथा श, , )
3) अघोष - खरो विवाराः श्वासा अघोषाश्‍च । ( वर्ग के प्रधम, द्वितीय वर्ण तथा श, , )
4) संवार - हशः संवारा नादा घोषाश्‍च । (वर्ग के द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ वर्ण तथा य, , , )
5) नाद - हशः संवारा नादा घोषाश्‍च । (वर्ग के द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ वर्ण तथा य, , , )
6) घोष - हशः संवारा नादा घोषाश्‍च । (वर्ग के द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ वर्ण तथा य, , , )
7) अल्पप्राण - वर्गानां प्रथम तृतीय पञ्चम यणश्‍चाल्पप्राणाः । (वर्ग के प्रथम, तृतीय, पञ्चम वर्ण तथा य, , , )
8) महाप्राण- वर्गानाम द्वितीय चतिर्थौ शलश्‍च महाप्राणाः । (वर्ग के द्वितीय चतुर्थ वर्ण तथा श, , )
9) उदात्त - स्वर
10) अनुदात्त - स्वर
11) स्वरित - स्वर 

3) करण के आधार पर ध्वनियों का वर्गीकरण -

           मुखगह्वर में स्थित इन्द्रियाँ ही करण हैं । स्थाम और करण का भेद मूलतः जङ़ता और गतिशीलता है । यद्यपि स्थान और करण दोनों ही वागेन्द्रियाँ हैं, किन्तु भेद चल और अचल का है । स्थान स्थिर होता है और करण अस्थिर एवं गतिशील । करण में निम्न इन्द्रियों का समावेश होता है - अधरोष्ठ, जिह्वा, कोमल तालु, स्वर तंत्री ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें